‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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भारत-पाक विदेश मंत्रियों की बातचीत! टेबल पर? युद्धभूमिं पर?

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राजीव खण्डेलवाल:
                   भारत और पाकिस्तान के बीच आज विदेश मंत्री के स्तर पर आज अंतिम दौर की बातचीत हो रही है। दोनो देशो के बीच बातचीत कोई नई बात नहीं है, न ही बातचीत में कोई नई बात है और न ही कोई नया परिणाम निकलने वाला है। हाल ही में 26/11 का मास्टर माईंड अबु जिन्दाल उर्फ अबु हमजा उर्फ जबीउद्दीन अंसारी को सउदी अरब से प्रत्यार्पण कर भारत लाया गया है। उसने जो जानकारी दी है उसके बाद राजनैतिक स्तर पर विदेश मंत्रियों के बीच बातचीत होना भारत का बड़प्पन ही कहा जाएगा जबकि पूर्व में ही भारत ‘डोजियर’ के रूप में समस्त दस्तावेज पाकिस्तान को दे चुका है जिसमें न केवल दाउद इब्राहिम के विरूद्ध मुम्बई बम कांड में लिप्त होने के दस्तावेजी साक्ष्य है बल्कि इस बात के भी पुख्ता सबूत दिये गये है कि वह कराची में ही विद्यमान है। अबु जिन्दाल के बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि 26/11 के मुम्बई बम कांड जो स्वतंत्रता के बाद शायद भारत पर सबसे बड़ा आतंकवादी हमला था, में न केवल आईएसआई की मुख्य भूंमिका थी बल्कि पाकिस्तान सरकार की भी सहायता उक्त बम कांड योजना में थी। अमेरिका ने 09/11 के हुए हमले के लिए जिम्मेदार ओसामा बिन लादेन को पकड़ने में अपनी सारी शक्ति झोंक दी और बिना अंतर्राष्टीय कानून का पालन किए बिना संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की स्वीकृति लिए बिना, पाकिस्तान सरकार की बगैर किसी स्वीकृति या जानकारी के पाकिस्तानी क्षेत्रों में लगातार ड्रोन हमले किये और अघोषित आक्रमण के रूप में आब्टाबाद शहर पर अपने स्पेशल शील कमाण्डों भेजकर लादेन को जिन्दा पकड़ने के बजाय उसको न केवल मृत्यू के घाट उतार दिया बल्कि उसका अंतिम क्रियाकर्म भी कर उसके नामो निशान को समाप्त करने का सफल प्रयास किया। 
                   भारत को शहीदे आजम भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद का देश कहा जाता है। ऐसे देश का वर्तमान नेतृत्व अपने आन बान की सुरक्षा के लिए अमेरिका समान हिम्मत क्यों नहीं बटोर पा रहा है यह समझ से परे है? यह प्रश्न न केवल कौंध रहा है बल्कि देश के नवयुवकों का सर यह सोचकर शर्म से नीचे झुक जाता है। क्या हमारे देश में वह मारक क्षमता नहीं है कि हम पाकिस्तान को इस मुद्दे पर अमेरिका के समान नेस्तनाबुत कर सके या हमारे देश के नेतृत्व में वह विचार शक्ति ही नहीं है। देश की सैनिक क्षमता में यदि कोई कमी है तो हमारा नेतृत्व उक्त कमी की पूर्ति क्यों नहीं कर रहा है? उसमें क्या कठिनाई आ रही है उसे देश के नागरिको को बताया जाना चाहिए व इस संबंध में स्वेतपत्र (जानकारी) लाया जाना चाहिए। यदि वास्तव में देश की सुरक्षा व्यवस्था, मारक व्यवस्था सुदृढ़ है और सिर्फ राजनैतिक नेतृत्व में ही कमी है तो यह नेतृत्व देश की आन-बान और शान को बचाये रखने के लिए क्यों नहीं तुरंत हट जाता है? जनता स्वयं उसे क्यूं नहीं हटा देती? यह प्रश्न हर भारतीय के दिलो-दिमाग में कौंध रहा हैं। खासकर दिमाग की नसे तब फटने लगती है जब-जब भारत पाकिस्तान से युद्ध के मैदान में बातचीत न कर टेबल पर बातचीत करता है और दूसरी ओर पाकिस्तान लगातार आतंकवादियों व आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देता है। कम से कम इस देश का जोशीला जवान खून तो दुर्बल भारत का अंश नहीं बनना चाहता है। यदि भारत सरकार दाउद इब्राहिम जो मुम्बई बम कांड का मुख्य आरोपी है एवं कराची में रहता है, उस पर हमला कर उसे भारत नहीं लाना चाहती है, तो क्यों नहीं मानव बम के रूप में मैं और मेरे जैसे विचारों वाले कई लोग राष्ट्र में है जिन्हे सरकार राष्ट्रहित में कराची में दाउद के घर पर क्यों नहीं उतार देती? ताकि दाउद का नामोंनिशान इस दुनिया से मिट सके और मुझे भी असीम शांति की चिर स्थायी नींद मिल सके। 
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है)
 
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