‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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कुच्छ फुर्सत के पल लहरों के संग

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आज हम सागर किनारे आये हैं 
            कुछ उसकी और कुछ अपनी सुनाने लाये हैं !
किसको फुर्सत है इस भरी  दुनिया में , 
                    इसलिए सिर्फ तन्हाई ही साथ लाये हैं !
जानते हैं हम की वो भी अकेला है !
                  क्योंकि दुनिया तो भीड़ भरा मेला है !
सब तेरे पहलू में आके चले जाते हैं !
                 अपना हर दर्द तुझको सुना जाते हैं !
शायद तेरी ख़ामोशी का फायदा उठाते हैं !
                तेरे भीतर  के दर्द को न जान पाते हैं !
तेरी हिम्मत की हम दाद देते हैं !
                  फिर भी तुझसे ये राज़ आज पूछते है !
क्या  ऐसी बात है की इतना खामोश है तू !
                  हम तो थोड़े से गम में ही टूट जाते हैं !
तेरी लहरों से तो हमे डर लगता है !
                  फिर भी तुझमे समां जाने का दिल करता है !
ना जाने किस किनारे में ले जाएँगी ये लहरें !
                  बस तुझसे बिछड़ने का ही डर रहता है !
 
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