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मुस्लिमों के वोट बीजेपी को मिल कैसे सकते है?

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यूपी चुनाव में बीजेपी का अल्पसंख्यक समीकरण: इलेक्शन प्लान

भारतीय जनता पार्टी ने अमित शाह के नेतृत्व और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के सघन जनसंपर्क से यूपी में अभूतपूर्व जीत हासिल की है। इस जीत पर चुनावी विश्लेषकों से लेकर विपक्षी भी हैरान है, बहुत से विपक्षी इस जीत पर सवाल भी उठा रहे है। क्योंकि लोकसभा की ही भाँति विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने एंटी बीजेपी माने जाने वाले मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी भारी सफलता अर्जित की है। मायावती जी का एक बयान ध्यान देने योग्य है कि “मुस्लिमों के वोट बीजेपी को मिल कैसे सकते है?”

इस गणित को यदि समझना है तो वर्तमान राजनीति के चाणक्य अमित शाह की चुनावी स्ट्रेटेजी समझनी होगी। जातिवाद में बटे बहुसंख्यक वोट बैंक को मैनेज करने की कला की अमित शाह की काबिलीयत तो सभी जानते है। परंतु अमित शाह ने एक तरफ़ा वोट डालने वाले अल्पसंख्यक वोट बैंक में कैसे सेंध लगाई आइये देखते है।

अमित शाह ने सबसे पहले तो सभी 403 शीटों पर बहुसंख्यक उम्मीदवार खड़े कर स्पष्ट संकेत दिया की बीजेपी बहुसंख्यको की सबसे बड़ी हितैषी है, एवं बहुसंख्यको की भावनाओं और हितों का सदैव ध्यान रखेगी। अब रही अल्पसंख्यकों की बात तो:-

ट्रिपल तलाक:
फिर ट्रिपल तलाक और बहु विवाह प्रथा एक ऐसा मुद्दा है जो मुस्लिम समाज में महिला वर्ग के लिए दुखती रग है। इस रग पर उन्होंने हलके से हाथ फिराया। आज मुस्लिम वर्ग की ज्यादातर महिलाए इस प्रथा से पीड़ित है और इस प्रथा में बदलाव कि उम्मीद अमित शाह दिलाने में कामयाब हुए। अमित शाह ने इस मुद्दे से मुस्लिम परिवारों में सीधे महिला मतों को अपनी और मिला लिया मतलब की मुस्लिम समाज के आधे मतों में सेंध लगा दी ।

विश्वासनीयता:
विरोधी अकसर बीजेपी को मुस्लिम विरोधी पार्टी के रूप में प्रचारित करके मुस्लिम वोट बैंक का इस्तेमाल करते है। इसके लिए गुजरात दंगे का उदाहरण बार-बार दिया जाता है। अमित शाह के पास इसका भी तोड़ था, वे बीजेपी शासित राज्यों की मुस्लिम टीमों के माध्यम से यूपी की जनता को यह विश्वास दिला देने में कामयाब हुए की बीजेपी शासित राज्यों के मुस्लिम आज सबसे सुरक्षित है एवं सम्पन्नता की ओर बढ़ रहे है। गुजरात में मुस्लिम समाज में हो रहे चहुओर विकाश, मोदी जी के सबका साथ सबका विकाश के नारे और बीजेपी शासित प्रदेशों में मुस्लिमों की स्थिति ने बीजेपी के लिए फैलाये गए चुनावी डर की हवा निकाल दी।


जमीनी मेहनत:
अमित शाह जमीन से जुड़े और स्थानीय समस्याओं और मुद्दों को लेकर अल्पसंख्यकों को ये भरोसा दिलाने में कामयाब हुए की बीजेपी सिर्फ चुनावी वादे नहीं करेगी बल्कि जीतने के बाद सभी समस्याओं पर काम भी करेगी। इस काम में सबसे ज्यादा लोकसभा चुनाव में मिले समर्थन के बाद मोदी सरकार के द्वारा अल्पसंख्यकों के लिये किये गए विकाश कार्यों ने की।

मोदी सरकार की योजनाये:
पिछले ढाई साल में मोदी सरकार द्वारा चलाई गयी योजनाओं ने भी अल्पसंख्यको में पैठ बनायी जैसे जनधन अकाउंट, डिजिटल साक्षरता अभियान, जिनमे उज्वला योजना महिलाओं की रसोई तक पहुची और उसका उपहार महिलाओं ने पोलिंग बूथ तक पहुचकर वापस किया. वही नोट बंदी ने यह विश्वाश दिलाया कि मोदी जी बुरे लोगो के खिलाफ है और गरीबो के साथ है. अमित शाह और उनकी टीम यह विश्वास दिलाने में कामयाब हुई की नोटबंदी गरीबो और देश के हित में है.
इस तरह से अमित शाह महिला मतदाताओं में तो पकड़ बना ही पाये परंतु उन पुरुष मतदाताओं में भी स्वीकार हुए जिनके रिश्तेदार अन्य बीजेपी शासित राज्यों में खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे है। ऐसे ही स्थानीय मुद्दों और मोदी जी के कार्यों के प्रचार से स्थानीय मतदाताओं में भी सेंध लगाने में कामयाब हुए। इस कार्य में विपक्ष की कमजोर छवि ने भी बीजेपी की भरपूर मदद की।
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