राजीव खण्डेलवाल:
नेस्ले के खाद्य उत्पादन मैगी के विक्रय पर दिल्ली और केरल सरकार ने न केवल बिक्री पर प्रतिबंध लगाया बल्कि बिहार की अदालत में मैगी के ब्रॉड एंबेसेडर अमिताभ बच्चन ,माधुरी दीक्षित ,प्रीति जिंटा पर प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश भी दे दिये। विगत तीन दिवस से अन्य प्रदेशो में भी इस पर कार्यवाही करने के संकेत मिल रहे है। अच्छे दिन आये हैं की भावना के साथ उक्त कार्यवाही सतही रूप से बिल्कुल ठीक लगती है लेकिन निश्चत रूप से उक्त कार्यवाही भेदभाव पूर्वक होने के कारण प्रश्न चिन्ह भी लगाती है। नेस्ले के प्रोडक्ट मैगी के अतिरिक्त अन्य कंपनीयों केे इसी प्रकार के उत्पादको को लेबोटरी जॉच कर उन पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई? पिछले 32 सालो से मैगी बिक रही है। अचानक क्या अब उसमें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्व पाए गये हैं? प्रश्न यह है कि मैगी की संरचना में जो हानिकारक खाद्य तत्व अब पाये गये है क्या 32 सालो से उन्ही तत्व का उपयोग हो रहा था? यदि हॅा तो 32 सालो से समस्त राज्य सरकारे व केन्द्र सरकार के अधीन जॉच करने वाली प्रयोग शालाएॅ (लेब) क्या सो रही थी? उन्हे नियमित जॉच कर नेस्ले कम्पनी के खिलाफ कार्यवाही करने का आदेश देना चाहिए था। प्रश्न यह भी उठता है इस पर माननीय अदालत ने प्रोडक्ट की कंपनी के खिलाफ ही नहीं बल्कि उक्त उत्पाद का प्रचार करने वाले ब्रांड एंबेसेडर के खिलाफ तो आपराधिक कार्यवाही की। लेकिन उस उत्पाद के प्रमोशन करने के लिए साधन व प्लेटफार्म उपलब्ध कराने के लिए और उसे प्रसारित करने लिए समस्त प्रिन्ट/इलेक्ट्रनिक मीडिया जिसने उसी प्रकार पैसे लेकर मैगी का विज्ञापन व प्रसार किया जिस तरह ब्रांड एंबेसेबर ने पैसे लेकर उक्त ब्राड के विज्ञापन का प्रमोशन किया एके खिलाफ कोई कार्यवाही क्यो नहीं की ?
चॅूकि घातक उत्पादनों पर पूरे देश में एक साथ प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। इसलिए इससे भी महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि जब मैगी मंे मोनोसोडियम, ग्लूटामेट की मात्रा अधिक तथा सीसे की घातक मात्रा पाई गई तब पूरे देश में एक साथ प्रतिबंध क्यो नहीं लगाया गया। इस सिक्के के दूसरे पहलू को देखा जाय तो एक तरफ सरकार सिगरेट के विषय में वैधानिक चेतावनी ‘‘स्वास्थ के लिये हानिकारक है ’’के साथ बिक्री बढाने के लिए विज्ञापन की अनुमति देकर खजाना भर रही है तो दूसरी ओर कई ब्रांड एंबेसेबर अनेकांे प्रोडक्टस का विज्ञापन कर रहे हैं। वास्तव में यह समय की आवश्यकता है कि सरकार राष्ट्रीय नीति बनाये और जो भी खाद्य पदार्थ स्वास्थ के लिए हानिकारक हैं देश में उनके उत्पादन /आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाये व उनके विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाया जाये ताकि देश व देश का स्वास्थ ठीक रखने के लिए देश में उत्पादित/आयात होने वाले किसी भी प्रकार के खाद्य संपूर्ण हानि रहित हांे तथा न केवल मैगी अपितु अन्य किसी भी हानिकारक खाद्यों के कारण होने वाले खाद्य सुरक्षा पर व्यय (खर्च) एंवं तकलीफ से नागरिकों को बचाया जा सके। इससे सरकार को एक ओर जहॉ प्रारभिक राजस्व का नुकसान होगा जिसकी क्षतिपूर्ति देश की अन्य पापुलर योजनाओं के नाम पर होने वाले अरबो रूपये के अनुत्पादक व्यय (जिसकी मात्र 10 प्रतिशत राशि ही जरूरतमंद व्यक्ति के पास पहॅुचती है) को बचाकर की जा सकती है। अपेक्षा कड़क है। निर्णय एवं कार्यवाही उससे भी कड़क हो, इसलिए ‘‘एक कठोर व्यक्ति
ही अच्छे दिन आयंेगे के नारे को असली’’ जामा पहनाने के लिये ऐसे कठोर निर्णय ले सकता है, और तभी जनता की अग्नि परीक्षा से गुजर कर देश की आर्थिक स्थिति में बदलाव ला सकता है।
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)
वाकई..सोचने वाली बात है
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