'अन्ना' के जनलोकपाल के मुददे पर हुए आंदोलन से उत्पन्न अरविंद केजरीवाल ने जब 'आप'के रूप में आम आदमी की बात करते हुए आम आदमी पार्टी 'आप' का गठन किया गया तो पूरे देश मे एक नये उत्साह व जोश के साथ एक अच्छी राजनैतिक संभावनाओ का वातावरण आम आदमी के मन मे पैदा हुआ। लेकिन इसके बाद से नई दिल्ली विधानसभा चुनाव लडने व मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के तत्पश्चात वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगे अरविंद केजरीवाल पर आये दिन मीडिया द्वारा लगातार आरोप लगाये जा रहे है। इस कारण जनता के बीच उनका आकषर््ाण कम होता जा रहा है। विकल्प की कल्पना अपने मन मे सजाये हुए अधिकांश नागरिक के मन में इस कारण एक गहरा झटका सा लग रहा है। लेकिन क्या वास्तव मे केजरीवाल ने वे सब कृत्य उस तीव्रता के साथ किये है जिस तीव्रता से मीडिया उन पर तीखे आरोप गढ रहा है, मुख्य यक्ष प्रश्न यही है।
यदि हम पूरी राजनैतिक परिस्थतियो का सिहांवलोकन करे व केजरीवाल के डेढ साल के राजनैतिक जीवन की गतिविधियो का परीशीलन करे, तो एक बात बडी स्पष्ट होती है कि केजरीवाल के विरूध मीडिया द्वारा उनकी प्रत्येक सामान्य आम गलतियों पर बारीकी से नजर रख उसे हाइलाइट कर बढ़ा चढाकर दिखाकर उन्हे जो बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है, इसके लिए केजरीवाल स्वयं जिम्मेदार हैं। केजरीवाल की सबसे बडी गल्ती तो यहीं थी कि उन्होने जब राजनैतिक पार्टी बना कर राजनीति मे आने की घोषणा की, तब स्वयं को 22 कैरेट का न मानकर 24 कैरेट का एक मात्र सत्यवादी हरीशचंद्र के रूप मे जनता के बीच पेश किया। वे यह भूल गये कि आज के कलयुग में सत्यवादी 24 कैरेट कोई नही है और न ही यह संभव है। वास्तव मे 24 कैरेट मात्र शो पीस होता है जिसका उपयोग नही हो सकता है। जब हम आभूषण बनाते है तो 22 कैरेट का ही उपयोग करते है। उसी प्रकार यदि केजरीवाल जनता के बीच अपने को यह कहकर पेश करते कि वे दूसरो से ज्यादा 22 कैरेट के समान अधिकतम ईमानदारी बरतेगे तो, शायद आज मीडिया को उन कृत्यो के कारण उन पर कीचड उछालने का मौका नही मिलता।
हाल में ही घटित तीन घटनाओ को ले। मीडिया ने दिन भर ब्रेकिग न्यूज के रूप में कानून तोडने वाले एक अपराधी के रूप में केजरीवाल को पेश कर आलोचना की। पहली घटना 'आज तक' के साक्षात्कार में पुन्य प्रसून बाजपेयी व केजरीवाल के बीच जो चर्चा हुई उसको लेकर जो आलोचना की गई, क्या वह ठीक थी ? सामान्य रूप से राजनीति में जब भी कोई नेता प्रेस को अपना साक्षात्कार देता है तो वह यही चाहता है कि उसे ज्यादा से ज्याद हाईलाईट किया जाये। उसके मुख्य मुददो को प्राथमिकता देकर ज्यादा से ज्यादा प्रसारित किया जाये। प्रसून और केजरीवाल के बीच साक्षात्कार मे जो कहा गया है वे राजनीति की सामान्य बाते है। चूकि केजरीवाल ने राजनीति मे आते समय 22 कैरेट की नही बल्कि 24 कैरेट के होने की बात कही थी और सिस्टम में सुधार करने के बजाय बदलाव की बात करके व्यवस्था को ही चेलेन्ज कर दिया था। इसलिए उनकी हर सांस पर मीडिया के हर कैमरे की नजर रहती है। इसलिए हर वह कार्य जो सामान्य रूप से आम आदमी के लिये स्वीकृत माना जाता है लेकिन केजरीवाल का नाम आने पर उनके प्रत्येक कार्य को बारीकी से बेरोमीटर से नापा जाता है और तब वे आलोचनाओ के घेरे में आ जाते है।
बात टोल टेक्स की करे तो जिस तरह से केजरीवाल टोल टेक्स से गुजरे है सामान्य रूप से बडे से लेकर बडे छुटभइये नेता तक ऐसे ही गुजर जाते है, लेकिन उफ्फ तक नही होती। केजरीवाल के आगे लाल बत्ती की गाडी थी। भूतपूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते शायद उन्हे छूट भी प्राप्त हो। मान्यता प्राप्त पत्रकार के उनके साथ होने पर भीे उनको छूट प्राप्त हो सकती थी। हमने पाया है जब भी पार्टी की रैली भोपाल में होती है तब पूरा रैला का रैला बिना टोल टैक्स दिये ( क्योकि टोल नाके के गेट तब खुले ही रहते है ) गेट से निकल जाते है। एैसा ही एक अनुभव मुझे भी हुआ था। लेकिन तब यह 'न्यूज' नही बनती है जबकि ऐस टोल नाके से एक नही कई नेता निकल जाते है। बात चूकि केजरीवाल की है जिन्होने पूरे सिस्टम को सुधारने के बजाय बदलने का चेलेन्ज किया है। इसलिए उनकी सामान्य बात को भी ब्रेकिंग न्यूज बनाना इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए जरूरी हो जाता है।
तीसरी बात मुंबई में आटो में जाकर पांच व्यक्तियो के बैठने के कारण कानून तोडने की है। इस सबसे हट कर यदि हम इस बात पर विचार करे कि जब राजनेता आंदोलन करते है तब वह वेे घोषित रूप में कानून तोडने की घोषणा कर उसकी बार बार अवज्ञा करके आंदोलन करते है। फिर चाहे धारा 144 के उल्लंघन का मामला हो, रैली निकालने का मामला हो, जूलूस निकालने का मामला हो, आदि आदि। तुरंत का उदाहरण मुंबई का है, जहां उन पर मुंबई पुलिस ने यह आरोप लगाया है कि मुंबई पहुचने पर उन्होने एयरपोर्ट पर गैरकानूनी रूप से भीड जुटाई और पांच से ज्यादा व्यक्ति इकटठे हुए जिस कारण उनके विरूध एफआईआर भी दर्ज की है। अतः यह स्पष्ट है जब अन्य पार्टी नेता उपरोक्त कार्य कर गुजरते है तोे वह ''आंदोलन'' कहलाता है लेकिन वही जब केजरीवाल करते है तो 'अपराध' हो जाता है। अतः यह साफ है कि केजरीवाल आम आदमी की बात करते करते खास हो गये है। क्या यह उनके व्यक्तिव व विचारो का विरोधाभास तो नही है ? यदि उन्हे सफल होना है, तो उन्हे इस विरोधभास को तोडना आवश्यक होगा।
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है)
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