‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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नये साल की वो तीन कसमें! तीन वादें और बेकार इरादे!

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  दिसम्बर की 31 और जनवरी की 01 तारीख बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। जैसे ही दिसम्बर की 31 और नये केलेण्डर वर्ष की 01 जनवरी की तारीख करीब आती है। इन महत्वपूर्ण तारीखों के लिए लोग तीन बड़ी-बड़ी सूचियां बनाते है। पहली यह की वे 31 दिसम्बर को अपनी जिन्दगी से कौनसी बुराईयां छोड़ेंगे! दूसरी यह की वे 01 जरवरी को क्या-क्या नया अपनायेंगे? तीसरी सूचि में इन तीन दिनों में पर किये जाने वाले खर्च खरीदी बिक्री की होती है।

तीन सूचियों पर उठते कुछ प्रश्न:
         पर क्या वास्तव में ये दों दिन के लिए बनी सूचियां पूरे साल अमल में ली जाती है? जो लोग पूरे साल में एक दिन भी शुबह 10 बजे से पहले नींद से नहीं उठते वे लोग घर में सबसे पहले उठ जाते है। इतना ही नहीं वे करीब की पवित्र नदी में ठंडे-ठंडे पानी में नहा धोकर भी आ जाते है, तो क्या अब वे अगले पूरे साल ऐसा ही करने वाले है? पूरे साल जो मंदिरों की आरे मुह तक नहीं फेरते, 01 तारीख को मंदिर में सबसे पहले पूजा पाठ करनेे के लिए लाईन में नजर आते है, तो क्या ये मानले की ये लोग अब आस्तिक हो गये और पूरा साल ये धर्म-कर्म करेंगे? वर्ष भर दुनिया से झूठ बोलने वाले 31 और 01 जनवरी को किसी से झूठ नहीं बोलते, जहां बोलना पड़े वहां शालीनता से चुप हो जाते है, तो क्या हम मान ले की अब ये लोग सत्यवादी राजा हरिशचंद्र की तरह सच्चे हो गये है? 01 तारीख को नये-नये कपड़े पहने जाते है, तो क्या अब पूरे वर्ष, प्रत्येक दिन नये-नये कपड़े पहने जायेंगे? वर्ष भर भिकारियों को दुत्कारने वाले भी इन दिनों दानपूण्य करते नजर आते है, तो क्या अब पूरा वर्ष भिकारियों का यही सत्कार होने वाला है? कोई बताये ऐसा कौनसी बात है जिसे हम इन दो दिनों में तय करते है और उसे ताउम्र निभाते है, कौनसा?

कसमें-वादों पर विचारः-
           कोई कसम खाता है कि वों 31 दिसम्बर को आखरी बार शराब पियेगा, मटन खायेगा, और नये वर्ष के इस पावन दिन 01 के बाद वो इन्हे छुयेगा भी नहीं! क्या वास्तव में यहीं होने वाला है? कोई अपने गुस्से को बीते वर्ष के साथ ही चलता कर देने की कसम खाता है! कोई झूठ बोलना छोड़ना चाहता है, कोई सच बोलना चालू करता है! कुछ युवा अपने बॉय फ्रेण्ड या गर्ल फ्रेण्ड से पूरी जिन्दगी का अटूट रिश्ता बनाने के वादा करते है। कुछ अपने मित्रों से वादे लेते है कि 01 जनवरी को वे बिल्कुल लड़ाई या बहस नहीं करेंगे वरना पूरा साल हमारी लड़ाई होती रहेगी। तो क्या मान लिया जाये की इन दिनों खाई हुई कसमें, वादे, इरादें, योजनाएं सर्वसिद्ध है, और ये जरूर पूरे होते है? क्या यह ग्यारंटी है कि ये कसमें-वादें अब जिन्दगी भर के लिए हो गये है। अब अगले वर्ष की इन्ही पवित्र तारीखों और इन्ही पवित्र दों दिनों में दोबारा यहीं सूचियां नहीं बनानी पड़ेगी?

विशेष ‘‘डे’’ की भरमारः-
          आजकल ये ‘‘डे’’ मनाने का चलन बहुत जोर पकड़ता चला है। केलेण्डर में एक वर्ष में जितने दिन नहीं है उतने ‘‘डे’’ हमारे पास है, याद करने के लिए। हर दिन एक ‘‘डे’’ है, और हम अपना-अपनी सहुलियत के हिसाब से ‘‘डे’’ सेलीब्रेट करते है। जैसे 31 दिसम्बर को ‘‘थर्टी फर्स्ट’’, 01 जनवरी को ‘‘न्यू ईयर डे’’, 02 अक्टूबर को ‘‘गांधी जयंती’’, 14 फरवरी को ‘‘वेलेनटाईंस डे’’, 15 अगस्त को ‘‘इंडिपेंडेंस डे’’, 26 जनवरी को ‘‘रिपब्लिक डे’’। इसी तरह ‘‘फ्रेंडशिप डे’’, ‘‘मदर्स डे’’, ‘‘फादर्स डे’’, ‘‘गुड-डे’’, ‘‘बेड-डे’’ अमका-डे, ढमका-डे पता नहीं कितने ही ‘‘डे’’हैं।  हमें तो जिन्दगी एन्जॉय करने का बहाना चाहिए और वैसे ये एसएमएस भी, अब सस्ते हो गये है न, उसका फायदा उठाना ही चाहिए। हमारी आदत पिछलग्गू हो गई है, आदत हो गई है नकल करने की, इतिहास रट्टा मारने की, ‘‘डे’’ मनाने की। अब हममें इतिहास बनाने की काबिलियत नजर नहीं आती, हमें जो ‘‘डे’’ की सूचियां पकड़ा दी गई है, हम उसी पर अमल करने वाले है, हम अपना कोई ‘‘डे’’ नहीं बनाने वाले। हलाकि ऐसे ‘‘स्पेशल डे’’ प्रोडक्ट मोर्केटिंग कम्पनियों की उपज है और उन्हे यह सबसे ज्यादा मालूम है कि कौनसे दिन कौनसा ‘‘डे’’ है, इसे कैसे प्रोमोट करना है और इस दिन क्या सबसे ज्यादा बेचना है। ये लोग "१४ फ़रवरी" को प्यार नहीं बेचते, "कंडोम" और "गर्भनिरोधक गोलिया" बेचते है।  

और अंततः
         आज हम स्वतंत्र देश के नागरिक है और हम गर्व से 15 अगस्त 1947 को प्रत्येक साल इसी दिन याद करते है। ‘‘क्या हमारा देश उस दिन सिर्फ इसलिए आजाद हुआ चूंकि 15 अगस्त एक विशेष दिन था? या उस दिन हमारा देष आजाद हुआ इसलिए हमारे लिए वो विशेष दिन है?’’ ‘‘02 अक्टूबर विशेष दिन था इसलिए गांधीजी इस दिन पैदा हुए थे या इस दिन गांधी जी पैदा हुए इसलिए यह एक विशेष दिन है?’’ क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जिस दिन हमने अपनी जिन्दगी की बुराईयां छोड़ दी वही दिन हमारी जिन्दगी का सबसे विशेष दिन  (स्पेशल डे) बन जाये? अगर ये ‘‘स्पेशल डे’’ नहीं होते तो क्या हममें कोई बदलाव हीं नही आते? हम बुराई नहीं छोड़ पाते, हम कुछ अच्छी आदते शुरू नहीं कर पाते? एक यादगार पल के लिए किसी "विशेष दिन"  का इंतजार करने की बजाय उस दिन को यादगार बनायें जिस दिन आपने यादगार पल जिया है। यदि किसी विशेष दिन का हमपर प्रभाव पड़ता तो हमें प्रत्येक वर्ष 31 दिसम्बर और 01 जनवरी के लिए सूचियां बनानी नहीं पड़ती। हमें एक बार पुनः दसहरे के दिन अपनी बुराईयों के प्रतिक ‘‘रावन’’ ‘‘कुम्भकरण’’ ‘‘मेघनाद’’ की पुतले जलाने नहीं पड़ते। 
"इतिहास बनाने के लिए किसी विशेष, तारीख या दिन की जरूरत नहीं होती।
वो तारीख, वो दिन विशेष बन जाता है, जिस दिन इतिहास रचा जाता है।।"

नए केलेंडर में  नए वर्ष के आगमन पर शुभकामनाये। 
 
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