‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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दिल्ली में पार्टियों की रस्साकस्सी और जनता को ठेंगा?

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              आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ा था और अब मौका मिलने पर भी विपक्ष में बैठने की जिद पकड़कर बैठे है। वही सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ‘‘जोड़-तोड़ की राजनीति’’ करने को ही तैयार नहीं। वहीं कांग्रेस का आठ सीटर लोटा किधर भी लुड़कने को तैयार लगता है बस कोई उन्हे लिफ्ट ही नहीं देता। ऐसे में क्या होगा दिल्ली का? क्या मिलेगा दिल्ली के आम आदमी को? सवाल बहुत है और जवाब सिर्फ एक है ‘‘आप’’।




Photo from: Indian Express
  आठ दिसम्बर को चार राज्यों के चुनाव परिणाम आये जिसमें तीन राज्यों में जनता ने स्पष्ट बहुमत देकर सरकार बनाने का रास्ता साफ किया। वही दिल्ली राज्य में मिश्रित परिणाम सें स्थिति बहुत ही पेचिदा हो गई है। यहां पर दो बड़ी पार्टियों भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनो को ही स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। ऐसे में सरकार बनाने के सारे समिकरण गड़बड़ा गये। दोनों ही बड़ी पार्टियां अपनी-अपनी रणनीति के चलते विपक्ष में बैठने को दृढ़ संकल्पित है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि सरकार कौन बनायेगा? राष्ट्रपति शासन लगेगा और दोबारा चुनाव होंगे? क्या बीजेपी या आप पार्टी सरकार बनाने के लिए कांग्रेस का समर्थन लेने की हिम्मत दिखा पायेंगी? ऐसे बहुत से सवाल है जो दिल्ली की जनता के मन में कौंध रहे है।
सरकार पर ‘‘आप’’ अड़ी ‘‘भाजपा’’ मजबूरः
दिल्ली में पार्टियों को मिले अस्पष्ट मत के बाद देश की बड़ी-बड़ी हस्तियों ने अपने-अपने तरीके से कोशीशे की कि किसी तरह कटबंधन सरकार बनाकर दिल्ली की जनता को दोबारा चुनाव के बोझ से बचाया जा सके। परन्तु इसके परिणाम निकलते नहीं दिखते। देश की पहली महिला आईपीएस और समाजसेवी डॉ. किरण बेदी ने ‘‘भाजपा’’ और ‘‘आप’’ को मिलकर सरकार बनाने का सुझाव दिया। वही आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण ने ‘‘आप’’ की ओर से ‘‘भाजपा’’ को मुद्दों पर आधारित समर्थन देने की बात कही। भाजपा के कद्दावर नेताओं ने अपने रूख में नरमी दिखाते हुए, आम आदमी पार्टी के सहयोग से सरकार बनाने की सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया। वहीं कांग्रेस ने सकील अहमद के हवाले से बिना सर्त आम आदमी पार्टी को समर्थन देने की बात कही। सारे कयासो और बयानों को आम आदमी पार्टी के संयोजक ने अरविंद केजरीवाल ने सिरे से खारीज कर दिया। इससे अब दोबारा चुनाव होने के स्पष्ट संकेत दिख रहे है।
‘‘आप’’ की जिदः
देश में खुद की पार्टी को छोड़कर सभी राजनैतिक दलों को भ्रष्टाचारी और जनविरोधी ठहराने वाले  आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के विपक्ष में बैठने का फैसला किसी के भी गले नहीं उतर रहा। यह उनके लिए सुनहरा मौका था, दिल्ली के लिए उनके देखे हुए सपनों को पूरा करने का। परन्तु वे अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते नजर आ रहे है। उन्होने सरकार बनाने के लिए चुनाव लढ़ा था, आज उन्हे सरकार बनाने का मौका मिल रहा है। तमाम राजनैतिक दल उन्हे बिना शर्त बाहर से समर्थन देने को तैयार है और वे विपक्ष में बैठने की जिद लगाये बैठे है। केजरीवाल की यह जिद किसी भी आम आदमी के समझ के बाहर की बात है।
भाजपा की मजबूरीः
वहीं सबसे बड़ी पार्टी भाजपा की अपनी अलग राजनैतिक मजबूरियां है। वो आने वाले लोकसभा चुनाव से पहले ऐसा कोई जोखिम नहीं लेना चाहती जिससे उसके मिशन 2014 पर कोई असर पड़े। इसलिए वह अपने पाले की गेंद आम आदमी पार्टी के पाले में डाल रही है। पार्टी के विधायक दल के नेता डॉ. हर्षवर्धन ने जोड़-तोड़ के जरिए सरकार बनाने की संभावनाओं से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा था, हम सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। पार्टी जोड़-तोड़ की राजनीति नहीं करने वाली। हालाकि यह उनका यह बयान उनकी राजनैतिक मजबूरी के चलते आया लगता है। जहां वे कांग्रेस का समर्थन ले नहीं सकते वहीं आम आदमी पार्टी अपनी जिद छोड़ने का तैयार नहीं है।
‘‘आप’’, ‘‘भाजपा’’ की नूराकुस्ती से जनता को ठेंगाः
अगर दोबारा चुनाव होते है तो सरकारी खजाने के करोड़ो रूपये फिर से चुनावी भेंट चढ़ जाना तय है। जिसकी जिम्मेदारी अपने-अपने स्वार्थ की राजनीति करने वाली पार्टियों पर होगी। दिल्ली में दोबारा चुनाव भलेही राजनैतिक पार्टियों को नये रास्ते दे, नये समीकरण बने। परन्तु दिल्ली की आम जनता के हिस्से एक और चुनाव का बोझ और उनके दिये मत का राजनैतिकरण ही मिलने वाला है। आम जनता को एक स्थिर सरकार मिलना दूर की कौड़ी लगता है और पुनः चुनाव होने की सम्भावनाएं प्रबल है। ऐसे में एक बार फिर जनता को अपना अमूल्य समय बरबाद करना है, दिनरात झूठे सपने, वादे, चुनावी शोर-शराबा और वहीं गढ्ढे वाली सड़के, वही महंगी बिजली, वहीं महंगे सिलेंडर, वही बेरोजगारी और वही महंगे प्याज।
 
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