‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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पहले उकसातें है! फिर बेचारे बनके खाते है पेड़े!

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अभी कुछ ही दिन पूर्व हमारे शहर में विजयादशमीं को मॉ दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन हुआ। देर रात बाजे गाजे के साथ चल रहे जुलुस और प्रतिमाओं पर एक धर्म विशेष के लोगो द्वारा पत्थर फेंककर प्रतिमा को छत्तिग्रस्त कर दिया। विसर्जन में साथ चल रहे भक्तों को भी चोंटे आई। घटना में 4 मोटर सायकिलो पर 12 लोग आये थे जिनमें से पांच लोगों को पुलिस द्वारा मौके पर गिरफ्तार किया गया और बाकि फरार होने में कामयाब रहे। घटना के बाद रात में ही हिन्दू संगठनों ने मौके पर विरोध प्रदर्शन किया। मामले में पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर लिपापोती शुरू करदी और जुलूस में शामिल कार्यकर्ताओं को समझा बुझाकर आगे बढ़ा दिया। 
यह घटना हमारे शहर में किसी एक वर्ष की नहीं है, यह विवाद प्रत्येक वर्ष होता है। यहां का बहुसंख्यक हिन्दु इतना शहनशील है कि वह अपने धर्म और संस्कृति के अपमान की कीमत पर भी अमन-चैन बनाये रखना चाहता है। यहां पर उत्तर-प्रदेश के कवाल गांव जैसी कई गलियां है जहां से बहन-बेटियां आने जाने में कतराती है। उन्हे भय सताता रहता है कि उनके साथ कहां और क्या घटना घटित हो जाये! 
जियादशमीं को प्रतिमा विशर्जन पर हमारे शहर में घटित घटना पर गौर किया जाये तो वे भी भविष्य के मुजफ्फर नगर दंगे, गुजरात के दंगे और ऐसे ही देश में हुए बहुत से दंगो का अतीत नजर आते है। यदि गम्भीर विचार करे तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि पहले तो हिन्दुओं को इस हद तक उकसाया जाता है कि वह भड़क जाये। जब हिन्दु भड़कता है और तांडव करता है तो फिर यही पीड़ित बन जाते है और सरकार की खैरात लूटने के लिये लाईन लगा लेते है। हिन्दुओं के भड़कने के बाद मीडिया में नजर आने वाला बेचारेपन का कवरेज और सरकार की ओर से मिलने वाली खैरात, अरब देशों का चंदा ही इस तरह के दंगो की प्रेरणा का श्रोत नजर आता है। भारत में ऐसे ही लोग और ऐसे लोगो को सपोर्ट करने वाले लोगो की जमात ही सेकुलर कहलाती है। 
एक दिन फेसबुक के आजतक चैनल के पेज पर एक ऐसा ही सेकुलर मुझसे टकरा गया। उससे 30 मिनिट की मेरी चैट ने मुझे दंगो के कारणों के तह में पहुंचा दिया। उस दिन मैनंे नरेन्द्र मोदी के सपोर्ट में एक कमेंट आजतक के पेज पर कर दिया तो वह लड़का सीधे गाली-गलोच पर उतर आया उसकी प्रोफाईल लखनऊ की थी। उसने मुझे इतनी भद्दी गालियां दी मुझे की मुझसे बरदास्त ही नहीं हुआ। उसने 30 मिनट में मुझे गुस्सा दिला दिया तो सोचता हूं हिन्दू समाज कैसे इन्हे  बरदास्त कर रहा है। उस वक्त यदि वह मेरे सामने वह होता तो मैं उसका क्या करता उसे एहसास भी नहीं होगा। उसकी शिकायत मैनें लखनऊ के कमिश्नर के ईमेल पर रिकार्ड सहित की लेकिन न ही कोई ईमेल वापस आया और न ही कोई कार्यवाही के बारें में मुझे कोई जानकारी मिली।
देश में जितने भी साम्प्रदायिक दंगे हुए है हर दंगे में हिन्दुओं को दोषी ठहराया जाता है। कोई उनके मूल पर विचार नहीं करता कि इतना शहनशील हिन्दु जिसने अपने योरोप तक अखण्ड देश का सैकड़ो बार बटवारा बरदास्त कर लिया, जो क्रूर अरबी आक्रमणकारियों और ढाई सदी तक राष्ट्र को लूटते रहे ब्रिटेन के वंशजो के साथ एडजस्ट हो गया, वह हिन्दू आखिर कई बार भड़क क्यूं जाता है? इसके लिए हर साम्प्रदायिक दंगा जिसमें हिन्दू शामिल हुआ है उसके मूल में जाना पड़ेगा। हिन्दू के इतने शहनशील होने का ही फायदा उठाया जाता है और उसे भांती-भांती से प्रताड़ित किया जाता है। मेरे शहर के दशहरा उत्सव का ही उदाहरण ले लो। आधी रात को हुई पत्थरबाजी को प्रशासन ने और मीडिया ने मिलकर मामले को यह कहकर दबा दिया कि यह आपसी विवाद का मामला था। ऐसा ही हर साल होता है और हर हिन्दू उत्सव में होता है। ऐसा नहीं है कि यहां का हिन्दू डरपोक या कमजोर है वह बस बरदास्त कर रहा है, साल दर साल जब तक हो सके तब तक शांती बनाये रखना चाहता है। परन्तु यह क्रोध और उपेक्षा का ज्वालामुखी कब फटेगा कोई कह नहीं सकता। पर यह सब जानते है कि जब भी यह फटेगा अपने साथ प्रलय लेकर आ सकता है। उसके बाद यहां भी बहुत से बेचारे लोग और पीड़ित पैदा हो जाएंगे। जो लोग इतने दिन से शेर की पीठ में पिन चुभा कर उकसा रहे है। वे ही बेचारे बनकर खैरात लेने लाईन में भी लग जायेंगे। 
अगर हिन्दुओ की बहनों को छेड़छाड़ न होती, महापंचायत के बाद वापसी पर उनकी निर्मम हत्या न की जाती तो मुजफ्फरनगर में इतने खैराती शिविरो की जरूरत न पड़ती। गुजरात में 2002 में शांतिपूर्वक लौट रहे कारसेवको से भरी ट्रेन को दुराग्रहपूर्वक न जलाया जाता तो मीडिया को इतने 13 वर्ष तक भौंकने के लिए मटेरियल न मिलता और इतने सारे सेकुलर नेता देश की सत्ता पर बैठकर राष्ट्र की सम्पत्ति का बंदरबाट न कर रहे होते।
ऐसी बहुत सी घटनाएं देखकर मुझे हमेशा ही यह आभाष होता है कि हिन्दू समाज इतना सहशनशील है कि वह शांती बनाये रखने के लिए हर चीज बरदास्त कर सकता है चाहे वह देश का सैकड़ो बार हुआ बटवारा हो, चाहे उनके आराध्य इतने वर्षो से टेंट में बैठे हों, बहन बेटी का अपहरण या उनकी इज्जत तार-तार करना हो सब बरदास्त कर सकता हैं। चुंकि हिन्दू जानता है कि उसका गुस्सा जब फुटता है तो वंश के वंश और धर्म के धर्म तबाह हो जाते है। रावण के समय राक्षसों का और महाभारत में कौरव वंश का नाश सब जानते ही है। 
 
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