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से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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हत्यारी भीड़ और वाहन-चालक बेचारे

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सड़क दुर्घटनाओं के बाद चाहे गलती हो या न हो पर उपस्थित भीड़ कानून व्यवस्था को ताक पर रखते हुए वाहनों में आग लगाना, चालको की हत्या करना, उपद्रव करना जैसी हरकते करती है, 
क्या ऐसा आचरण जनता को शोभा देता है? 
फोटो: साभार http://www.bhaskar.com/
कृष्णा बारस्कर:
          आये दिन पपेरो में पढने को मिल जाता है की फलाना नगर में ट्रक एक्सीडेंट हो गया जिसके बाद लोगो ने चालक और कंडेक्टर को मार डाला, ट्रक को आग लगा दी, ट्रक ड्राइवर फरार हो गया इत्यादि! मुझे भी आज ही एक पेपर पढने एक ऐसी घटना पढने को मिली जिसमे हर भारतीय को शर्मिंदा होना चाहिए! जयपुर में एक ट्रक ड्राइवर की जान खूनी भीड़ द्वारा सिर्फ इसलिए ले ली गयी क्यूंकि स्टेयरिंग फेल होने से एक ट्रक बेकाबू हो गया और सड़क किनारे लगी रेलिंग से टकरा गया। जिससे एक मोटर साइकिल चालक मामूली घायल हो गया! इसी घटना में पुलिस टीम को भी दौड़ा दौड़ा कर पीटा गया और वहाँ हुए उपद्रव में सरकारी सामान का भारी नुक्सान किया गया!
          घटना पर गौर किया जाए तो समाज का एक बेहद वहसियाना रूप नजर आता है! जिसमे न तो किसी मानव भूल के लिए कोई जगह है और न ही किसी मशीनी भूल के लिए, सुधार के लिए कोई दूसरा मौका नहीं है! हमारा समाज आज कहा जा रहा है समझ नहीं आता! आज किसीके जान-माल की कोई कीमत नजर नहीं आती! जनता खुद ही पुलिस, खुद ही कानून और खुद ही जज बनकर तुरंत फैसला सुना देती है! सरकार, कानून, व्यवस्था है या नहीं किसीको कोई फिकर नहीं, स्वयंभू न्यायलय बन जाती है भीड़! 
          आजकल एक प्रथा बन गयी है कि दुर्घटना चाहे किसी भी कारन हुई हो, चाहे मानव भूल से, मशीनी गड़बड़ी से या किसी अन्य भी कारन से! वाहन चालक की गलती हो या न हो वहां चलाने वाला ड्राईवर या तो दुर्घटना में मारा जाता है या वहां उपस्थित भीड़ उसे मार देती देती है! मौत का यही डर वहां चालको को घटना स्थल से भागने को मजबूर करता है! एक्सीडेंट की चपेट में अगर कोई आ जाये तो वाहन चालक रूककर उसकी मदद करने के बजाय मौत के दर से  वहाँ से भाग जाते है! भलेही फिर वे पुलिस थाने में जाकर सरेण्डर करदे! वाहन चालक की नौकरी आजकल जान का जोखिम हो गयी है! भीड़ का भीड़ का डर वाहन चालको में ऐसा बैठा है की चाहे हाईवे पर चलते चौपहिया वाहन हो या नगर में घूमते दोपहिया, तिपहिया वाहन दुर्घटना के नाम पर उनका दिल दहल जाता है! दुर्घटना घटते ही उनके मन में किसी तरह जान बचाकर भाग जाने का ख्याल मन में आता है!
          कोई भी वहां चालक स्वेच्छा से कोई दुर्घटना नहीं करता, उसके कई कारन हो सकते है! ऐसे में इस प्रकार की अमानवीयता लोगो में अचानक कैसे और क्यों आ जाती है यह चिंतनीय विषय है! वाहन चालक भी अपना घर-परिवार छोड़कर दो जून की रोजी-रोटी कमाने के लिए अपना जान को जोखिम में डालकर चालक की नौकरी करते है! उनके मरने के बाद उनके परिवार की चिंता कौन करेगा? क्या यही खुनी भीड़ उसके परिवार के भरण पोषण के लिए चन्दा जमा करेगी? कौन समझेगा उन गरीब वहां चालको का दर्द? जनता का यही गुस्सा कभी देश के नीति निर्धारको (नेतावो) के लिए नहीं जागता! अगर जाग जाता तो आज हमारे देश की सड़के ऐसी होती की दुर्घटनाये रोकी जा सकती थी और जरा-जरा सी बात पर मार दिए जा रहे वहां चालको को बचाया जा सकता!
 
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