‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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“गुलाब भरा आँगन”

6 comments
“गुलाब भरा आँगन” सहजता सिमटता हवा का झोंका सहज होनें का करता था भरपूर प्रयास. बांवरा सा हवा का वह झोंका गुलाबों भरे आँगन से चुरा लेता था बहुत सी गंध और उसे तान लेता था स्वयं पर. गुलाब वहां ठिठक जाते थे हवा के ऐसे अजब से स्पर्श से किन्तु हो जाते थे कितनें ही विनम्र मर्म स्पर्शी और ह्रदय को छू लेनें को आतुर. हवा का वह झोंका आज फिर यहीं कहीं हैं गुलाब भरे आँगन के आस पास गुलाबों की गंध को चुरानें के लिए. अंतर था तो बस इतना कि आज हवा का झोंका गंध को स्वयं पर तान कर चला जाना चाहता था दूर कहीं प्रणव और कल्पनातीत होकर स्पर्शों के आकर्षण को भूल जाना चाहता था वह.

6 Responses so far.

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (15-05-2013) के "आपके् लिंक आपके शब्द..." (चर्चा मंच-1245) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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