‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
Powered by Blogger.
 

अन्ना के आंदोलन का बहीखाताः क्या पाया! क्या खोया!

3 comments

 जनता के सामने राजनैतिक विकल्प प्रस्तुत करने के इरादे के साथ अन्ना द्वारा सांय 5 बजे से अनशन समाप्ति की घोषणा पर मीडिया में यह सुर्खिया कि एक बड़े जन आंदोलन की मौत/ हत्या, हो गई छायी रही। वास्तव में उक्त आंदोलन के समाप्त होने के प्रभाव एवं परिणाम की विवेचना किया जाना इसलिए आवश्यक है कि यह भविष्य की देश की राजनीतिक दिशा को तय करने में एक महत्वपूर्ण कारक होगा।
             सर्वप्रथम यह बात तो अन्ना को मालूम ही होनी चाहिये जब वह तीसरी बार जनलोकपाल के साथ एक मुद्दे 15 मंत्रियों के विरूद्ध एटीएस की जांच करने की मांग को और जोड़कर आंदोलन पर बैठे तो उन्हे उस सरकार से कोई उम्मीद नहीं होनी चाहिए, करनी चाहिये जिससे पूर्व में लगातार उनकी बात असफल हो चुकी हो, बावजूद इस तथ्य के देश की संसद व प्रधानमंत्री ने उन्हे ऐतिहासिक सेल्यूट ठोका था। इस कारण से तीसरे स्टेज के इस अनशन का यह परिणाम तो लाजिमी ही था। अन्ना को ही इस बात का जवाब देना है कि वे इस स्थिति के बावजूद आशा लिये अनशन पर क्यों बैठे? लेकिन यदि हम इस जन-आंदोलन की 16 महीने की अवधि को संज्ञान मे ले तो यह मानना बड़ी भूल होगी कि इस आंदोलन की कोई उपलब्धि नहीं हुई। आइये आगे हम इस पर हम विचार करते है।
             सबसे बड़ी उपलब्धि तो इस आंदोलन की यही है कि यह स्वाधीनता के बाद राष्ट्रीय परिपेक्ष में पहला संगठन-विहीन जन-आंदोलन था, राजनैतिक आंदोलन नहीं। आसाम का ‘आसू (आल इंडिया स्टुडेंट यूनियन), का आंदोलन निश्चित रूप से एक गैर राजनैतिक सफल आंदोलन था जो बाद में राजनैतिक प्लेटफार्म में परिवर्तित हो गया। लेकिन यह देश का मात्र एक छोटे से प्रांत का आंदोलन था जो सिर्फ ‘आसाम’ के हितो व उद्वेश्य के लिए किया गया था। अतः उक्त जन-आंदोलन की तुलना इस राष्ट्रीय आंदोलन से नहीं की जा सकती है। 
             इस आंदोलन की प्रथम उपलब्धि यही है कि इसे एक राष्ट्रीय जन आंदोलन की मान्यता मिली यह कहना अतिश्योक्ति पूर्ण नहीं होगा। यदि जय प्रकाश नारायण के आंदोलन से इसकी तुलना की जाती है तो वह अनुचित है। जयप्रकाश नारायण का आंदोलन भ्रष्टाचार के विरूद्ध प्रथमतः ‘नवनिर्माण समिति गुजरात’ द्वारा प्रारंभ किया जाकर बिहार के छात्रो के शामिल होने के बाद जय प्रकाश नारायण के आव्हान के बाद समस्त गैर कांग्रेसी कम्यूनिष्ट राजनैतिक पार्टियो के भाग लेने के कारण वह आंदोलन जन आंदोलन न होकर जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में राजनैतिक पार्टियों के साथ समय के साथ-साथ आम आदमियों की भागीदारी होकर एक सम्पूर्ण क्रांति का आंदोलन बना था। जिसकी यह परिणाम हुआ कि आंदोलन में भाग लेने वाले समस्त राजनैतिक दल एवं गैर राजनैतिक व्यक्तित्वो का विलय जनता पार्टी निर्माण के रूप में हुआ जिसने तत्कालीन स्थापित राजनैतिक धरातल को जो सड़ गये लोकतंत्र का प्रतीक था को उखाड़ फेका था।
इस आंदोलन की दूसरी बड़ी उपलब्धि यह रही कि इसने भ्रष्टाचार के मुद्दो को आम मानस पटल तक पहुॅचाकर झकझोर दिया। वे नागरिक भी जो भ्रष्टाचार से लाभान्वित है उनके सुर भी भ्रष्टाचार के विरूद्ध उठने लगे। लेकिन यह आधी सफलता है क्योंकि इसके बावजूद वे समस्त नागरिक स्वयं भ्रष्टाचार से विरक्त नहीं हो पा रहे है।
             तीसरी बड़ी बात अन्ना के इस आंदोलन से उठती है वह यह कि आंदोलन समाप्त नही हुआ है लेकिन निश्चित ही आंदोलन का स्वरूप बदला है। अर्थात जन-आंदोलन राजनैतिक आंदोलन में बदला जा रहा है। (अन्ना एवं उनकी टीम आगे किस नाम से जाने जायेंगे यह अभी गर्भ मे है।) लोकपाल से आगे जाकर विभिन्न जन समस्याओं के लिए आंदोलन की आवश्यकता के कारण आंदोलन तो समाप्त नहीं होगा क्योकि समस्याएॅ समाप्त नहीं होगी। इस आंदोलन की एक ओर उपलब्धि से इंकार नहीं किया जा सकता वह यह कि मध्यम वर्ग जो मूक दर्शक बना रहता था प्रखर होकर घर व अपने कार्य से बाहर निकल कर आंदोलन में शामिल हुआ व स्व-प्रेरणा से आंदोलन को चलाने के लिये आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया।
             बात जब बही-खाते की है तो जमा के साथ खर्च की भी चर्चा करना आवश्यक है। सबसे बड़ा नुकसान आंदोलन के अचानक समाप्त होने की घोषणा से जो हुआ है वह यह कि जनता की अपेक्षाए, विश्वास की हत्या नहीं तो मौत अवश्य हुई है। यदि प्राकृतिक मौत होती तो भी कोई दिक्कत नहीं थी। दूसरे इस आंदोलन ने समस्त लोगो के दोहरे चरित्र को उजागर किया है जिसका विस्तृत विवरण के लिए पृथक लेख की आवश्यकता होगी। तीसरा बड़ा नुकसान अन्ना की स्वयं की विश्वसनीयता पर एक हल्का सा प्रश्नवाचक चिन्ह भी लगा है जो लगातार राजनीति से दूर रहने की बात कहने के बाद उनका राजनैतिक विकल्प की शरण लेना है। यदि परिस्थितिवश व देशहित में यही एकमात्र विकल्प है तो यह उनकी मजबूरी, लाचारी को भी दर्शाता है। चौथा जो सबसे बड़ा खतरा भविष्य में बना रहेगा वह यह कि यदि यह आंदोलन दूसरे रूप में भी सफल नहीं हो पाया तो जो एक रिक्तता पैदा होगी वह स्थिति को ‘बद’ से ‘बदतर’ कर देगी।
             इसलिए अंत में ईश्वर से यही प्रार्थना की जा सकती है कि अन्ना जैसे व्यक्तित्व बार-बार पैदा नहीं होते है अतः जो कुछ अन्ना अभी हमारे बीच बचे है उनसे ही इस देश की वर्तमान ‘गति’ का उद्धार हो जाये अन्यथा भविष्य में शायद इतना भी संभव नहीं होगा।

3 Responses so far.

  1. Anonymous says:

    खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल
    निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने
    इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे
    इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    My web page : फिल्म

  2. Anonymous says:

    hi all svatantravichar.blogspot.com admin found your website via Google but it was hard to find and I see you could have more visitors because there are not so many comments yet. I have discovered site which offer to dramatically increase traffic to your website http://xrumer-services.net they claim they managed to get close to 4000 visitors/day using their services you could also get lot more targeted traffic from search engines as you have now. I used their services and got significantly more visitors to my blog. Hope this helps :) They offer most cost effective services to increase website traffic Take care. Roberto

 
Swatantra Vichar © 2013-14 DheTemplate.com & Main Blogger .

स्वतंत्र मीडिया समूह