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से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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क्या 'भ्रष्टाचारी' भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकता?

6 comments
राजीव खण्डेलवाल

विगत कुछ समय से अन्ना और उसकी टीम पर केन्द्र सरकार और कांग्रेस पार्टी द्वारा लगातार हमले किये जा रहे है कि अन्ना और उनके साथी भ्रष्टाचार में स्वयं लिप्त रहे है। इसलिए भ्रष्टाचार के विरूद्ध इन्हे आवाज उठाने का कोई अधिकार नहीं है। वास्तव में जब भी किसी भी सरकार के विरूद्ध कोई व्यक्ति, संस्था या पार्टी आवाज उठाती है और उसेआंदोलन के स्वरूप तक ले जाती है। तो सरकार का प्रयास यह होता है कि उस व्यक्ति या संस्था को इतना बदनाम कर दो की उसकी नैतिक स्वीकारिता जनता के बीच नहीं रहे और वह आंदोलन टाय टाय फिस हो जाए। अन्ना और उसकी टीम पर आरोप लगाने का सरकार का उद्देश्य भी यही है।

कांग्रेस पार्टी और खासकर उनके प्रवक्ता मनीष तिवारीजी यह स्पष्ट करें कि उन्होने अन्ना पर उपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाकर क्या वह उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करने का कानूनी हक छीनना चाहते है या नैतिक हक छीनना चाहते है? और दोनो ही स्थितियों में वे अपने गिरेबान में झांके तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि उन्हे न तो कानूनी और न ही नैतिक रूप से अन्ना और उनकी टीम पर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उंगली उठाने का अधिकार है। मनीष तिवारी कीबात को यदि सिर्फ तर्क के रूप में मान्य भी की जाए कि अन्ना भ्रष्टाचारी है तो भी उन्हे कानूनी रूप से किसी भी दूसरे जगह हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का नागरिक अधिकार प्राप्त है। यदि एक 'अपराधीÓ के सामने कोई दूसरा अपराध हो रहा है तो उसकी गवाही अन्य परिस्थितियां और गवाहो के साथ स्वीकार योग्य है। इस देश की वर्तमान संसद में लगभग साठ से अधिक सांसदो के खिलाफ विभिन्न अपराधिक प्रकरण चल रहे है, पूर्व में स्टिंग आपरेशन हुए है वे भी जनता का समर्थन पाकर संसद में चुने जाकर कानून निर्माण में लगे हुए है। तब कोई नैतिकता की बात नहीं आती। इसी प्रकार यदि कांग्रेस पार्टी अन्ना को भ्रष्ट मान भी रही है तो भी उसके बावजूद जनता ने उनको देशव्यापी समर्थन भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल बिल के माध्यम से दिया है। अर्थात न तो जनता अन्ना व उसकी टीम को भ्रष्ट मान रही है और न ही किसी कानूनी प्रक्रिया के तहत वे भ्रष्टाचार के आरोपी बनाये गये, सिद्ध होना तो दूर की बात है। इसलिए अन्ना के पास जितना कानूनी बल है, उतना ही नैतिक बल भी है इसलिए सरकार में घबराहट के लक्षण है। चूंकि अन्ना निडर है और उन्होने सरकार को खुली चेतावनी दी है कि वे उनके खिलाफ कोई भी जॉच करा ले, एफआईआर दर्ज करा लें वे सबका स्वागतपूर्वक सामना करने को तैयार है इसलिए सरकार की घबराहट और झल्लाहट क्षण प्रतिक्षण बढ़ती जा रही है जिसके यह परिणाम है कि सरकार संवैधानिक दायित्वों को निभाने के बजाय इस प्रकार के दुष्प्रचार कर जनता के बीच अन्ना के विरूद्ध एक घृणा पैदा करने का असफल प्रयास कर रही है।

प्रधानमंत्री, केंद्रीय सरकार के विभिन्न मंत्री और कांगेस पार्टी का बार-बार यही कथन कि अन्ना संविधानेत्तर लोकपाल बिल के मुद्दे पर गैरसंवैधानिक रूख अपनाये हुए है क्योंकि कानून बनाने का काम संसद का है जो संसद की स्थाई समिति को सौप दिया गया है और इसलिए अन्ना का अनशन गैर औचित्यपूर्ण है। कांगे्रस पार्टी और मंत्री भूल गये कि यद्यपि लोकतंत्र में संसदीय प्रणाली में जनता द्वारा प्रतिनिधि निश्चित अवधि (पांच वर्ष) के लिए चुने जाकर सरकार चलाते है। लेकिन संसदीय लोकतंत्र की इस व्यवस्था मात्र से ही लोकतंत्र के जनता के जनतांत्रिक अधिकार छिन नहीं जाते है। यदि कांग्रेस पार्टी का तर्क मान लिया जाए तो फिर विपक्षी पार्टियों को संसद में भी कोई विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि संसदीय लोकतंत्र बहुमत की राय से चलता है और जब जनता ने कांगे्रस को बहुमत देकर शासन करने का जनादेश दिया है तो फिर विपक्ष की क्या आवश्यकता है और न ही विपक्ष को संसद में सरकार की नकेल कसना चाहिए है? लोकतंत्र की यह व्यवस्था है कि सत्ता पक्ष (शासन) के साथ-साथ विपक्ष भी इसी लोकतंत्र का भाग है और विपक्ष होने के नाते सरकार की गैरसंवेदनशील अलोकप्रिय व जनअहितकारी नीतियों पर अंकुश लगाये और उसके लिए अपना सार्थक विरोध करें। उसी प्रकार पांच साल के लिए चुनी गई सरकार के अलोकप्रिय निर्णय के विरूद्ध नागरिक संगठनो को सरकार के विरूद्ध जनता के बीच जाकर आवाज उठाने का अधिकार भी यही संसदीय लोकतंत्र देता है। इसका उपयोग ही अन्ना हजारे और उसकी टीम कर रही है। जिसको देश के विराट बहुमत ने समर्थन देकर सही सिद्ध किया है। इसलिए कांग्रेस पार्टी और उसके मंत्री इस कुतर्क का सहारा नहीं ले कि अन्ना संसदीय लोकतंत्र के परे संसदीय संस्था को कमजोर करने का प्रयास कर रहे है। यहां लोहिया की पंक्ति की पुन: याद आती है कि ''जिंदा कौमें पांच साल तक चुप नहीं रह सकतीÓÓ। अन्ना ने यह बात सिद्ध की है कि भारत की कौम जिंदा कौम है। लोहिया ने जो कहा था वह आज भी सही और अन्ना का अगला कदम राईट टू रिकाल के लिए होना चाहिए ताकि सत्ताधारी पार्टी जनआंदोलन के खिलाफ उपरोक्त कुतर्क के आधार पर यदि आंदोलन को रोकने का प्रयास करेंतो ऐसे जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाकर माकूल जवाब दिया जा सके।

अंत में एक बात और इस दुनिया में कोई भी व्यक्तित्व पूर्ण नहीं है। कुछ कमियों के साथ अधिकतम अच्छाई या कुछ अच्छाईयों के साथ अधिकतम बुराईया है यह मानवीय लक्षण है। इसलिए भी यदि अन्ना में कोई बुराइयां है या कोई गलत कार्य किया है तो भी एक अच्छे उद्देश्य के लिये अच्छा कार्य करने से उक्त आधार पर उन्हे नहीं रोका जा सकता है बल्कि वे उक्त कार्य करके अपने को एक और अच्छा व्यक्ति बनने की दिशा में एक अच्छा उठाया गया कदम है यह सिद्ध करेंगे।

6 Responses so far.

  1. bhrashtachari bhi bhrashtachaar ke khilaaf aawaj utha sakta hai

  2. टिप्पणी में देखिए मरे चार दोहे-
    अपना भारतवर्ष है, गाँधी जी का देश।
    सत्य-अहिंसा का यहाँ, बना रहे परिवेश।१।

    शासन में जब बढ़ गया, ज्यादा भ्रष्टाचार।
    तब अन्ना ने ले लिया, गाँधी का अवतार।२।

    गांधी टोपी देखकर, सहम गये सरदार।
    अन्ना के आगे झुकी, अभिमानी सरकार।३।

    साम-दाम औ’ दण्ड की, हुई करारी हार।
    सत्याग्रह के सामने, डाल दिये हथियार।४।

  3. जब भी कोई मौलिक पहल होती है,अनेक झंझावात सामने आने लगते हैं। सही-गलत का आकलन बहुत बाद में ही संभव हो पाता है।

  4. ये रीत तो पहले से चली आई है कि जब भी कोई अच्छे काम कि और कदम बढाता है तो उसे इन बातों का सामना तो करना ही पढता है तो डर किस बात का ? सरकार अपना काम कर रही है और अन्ना जी अपना और उनका होंसला हमें बढाना है फिर सोचना कैसा बस अपनी मंजिल कि तरफ बढते चलते हैं | बहुत सुन्दर लेख |

  5. Anonymous says:

    Great article and blog and we want more :)

  6. Anonymous says:

    El hecho de que la gente tenga que morir se toma,

 
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