‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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समर्पण

6 comments

चाँद तारों की बात करते हो 
हवा का  रुख को बदलने की  
बात करते हो 
रोते बच्चों को जो हंसा दो 
तो मैं जानूँ |
मरने - मारने की बात करते हो 
अपनी ताकत पे यूँ इठलाते  हो  
गिरतों को तुम थाम लो 
तो मैं मानूँ |
जिंदगी यूँ तो हर पल बदलती है
अच्छे - बुरे एहसासों से गुजरती है  
किसी को अपना बना लो 
तो में मानूँ |
राह  से रोज़ तुम गुजरते हो 
बड़ी - बड़ी बातों  से दिल को हरते हो 
प्यार के दो बोल बोलके  तुम 
उसके चेहरे में रोनक ला दो 
तो मैं जानूँ |
अपनों के लिए तो हर कोई जीता है 
हर वक़्त दूसरा - दूसरा  कहता है |
दुसरे को भी गले से जो तुम लगा लो 
तो मैं मानूँ |
तू - तू , मैं - मैं तो हर कोई करता है 
खुद को साबित करने के लिए ही लड़ता है 
नफ़रत की इस दीवार को जो तुम ढहा दो 
तो मैं मानूँ |

6 Responses so far.

  1. वाह ! बेहद शानदार , लाजवाब रचना ………………सही कहा है करो तो कुछ ऐसा तब इंसान कहलाने लायक हो वरना ज़िन्दगी जानवर भी जी कर चले जाते हैं।

  2. वाह ! बेहद शानदार , लाजवाब रचना|

  3. bahut shandaar

    ब्लॉग लेखन को एक बर्ष पूर्ण, धन्यवाद देता हूँ समस्त ब्लोगर्स साथियों को ......>>> संजय कुमार

  4. Anonymous says:

    Excellent blog post, I have been reading into this a bit recently. Good to hear some more info on this. Keep up the good work!

  5. Anonymous says:

    plus large pour la simple rubefaction.

 
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