‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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परदे में रहकर उन्हे बेपरदा करो इतने बेशर्म न हो

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नगर भ्रमण करते-करते कुछ यूवक, युवतिया रूमाल से पूरे चेहरे को लपेटे हुए पैदल व वाहनों पर नजर आये। मेंरे मन में खयाल आया कि आधुनिक तड़क-भड़क संस्कृति के अंग ये युवा जो अर्धनंग कपड़ो से परहेज नहीं करते। उन्हे ऐसी कौनसी शर्म आने लगी जो उन्हे चेहरा ढकने की जरूरत पड़ने लगी? मैं सोचने पर विवस हो गया कि इस तरह चेहरा तो गर्मियों से बचने के लिए युवतियां, युवतियां बांधती है। फिर इस ढण्डी के कट्टरवादियों के पारम्परिक पहनावें की क्या जरूरत पड़ गई आज की यंग ब्रिगेड को? मुझे इस तरह से चेहरा ढकने और इस्लाम के परदा प्रथा में समानता नजर आई। पर लेख का मूल उद्वेश्य है परदा प्रथा की भारतीय समाज में घुसपैठ और क्या इस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है?
विश्व के कई देशो में यदा-कदा परदा प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठती रही है। कुछ देशो ने तो पूर्ण या आंशिक प्रतिबंध भी लगा दिये है और कुछ लगाने की तैयारी कर रहे है। सर्वप्रथम हम यह जान ले कि परदा प्रथा होती क्या है? परदे के चार रूप होते है जिसमें 1) हिजाब (सर ढकना), 2) जिजाब (एक वस्त्र जो केवल हाथ और चेहरे को खुला रखता है), 3) नकाब (आंखो को छोड़कर बाकी सब आवृत रखता है), 4) बुर्का (सम्पूर्ण सर और शरीर ढकना)। विश्व पटल पर इस प्रथा का प्रचलन को काफी पुराना है परन्तु भारत में यह प्रथा इस्लामिंक देन है। इतिहास में इस्लामिक आक्रमन के समय महिलाओं के साथ किये जा रहे दुर्व्यहार के कारण अपने आत्मसम्मान की रक्षार्थ महिलाओं द्वारा धारण किया गया यह लिवास आग चलकर एक परम्परा बन गया। 
आत्मसम्मान बचाने हेतु अंगिकार की जाकर सामान्य जीवन की आवश्यकता बनी इस प्रथा के दुरूपयोग होने के कारण इसे खत्म करने हेतु एड़ी चोटी का जोर लगाया जा रहा है। इसका उपयोग आतंकवादी, लुटेरे, चोर और अवैध व्यापार करने वाले लोग कर अपनी पहचान छुपाने के लिए है। इस बुर्के के कारण समय-समय पर इस्लाम के कायदे-कानूनों पर खूब सवाल उठाये जाते रहे है। सवाल ये है कि क्या सिर्फ ईस्लाम में ही बुर्के का उपयोग किया जाता है? मेरे विचार में बुर्का सिर्फ ईस्लामिक परम्परा की मजबूरी न रहकर आज के आधुनिक समाज की सामान्य जरूरत बन गया है। इससे भी एक कदम आगे 19 वी सदी के पारम्परिक रीति-रिवाजों और 20 वी सदी के आधुनिक विचारों के बीच सामजस्य बैठाने का एक उत्तम जरिया है ये बुर्का। फर्क सिर्फ इतना है कि ईस्लाम में शरीर ढकने वाले इस साधन को पारम्परिक तौर पर इस्तेमाल जाता है। जबकि अन्य धर्म इसे शौक या जरूरत के लिए आवश्यकतानुसार पूर्ण या आंशिक रूप में इस्तेमाल करते है। बहुत सारे देशो ने तो इस प्रथा की कुरीतियों को देखते हुए प्रतिबंध लगा दिया जिसमें इस्लामिंक मत वाले देश अग्रणी रूप से शामिल है। सर्वधर्मसमभाव वाले देश ’’भारत’’ में जहां धर्म की बात करना ही कट्टरता कहलाता है बुर्का प्रथा पूर्णतः खत्म कर पाना आसान होगा? 
धार्मिक कट्टरता और परम्परा से इतर आजकल नगर, मुहल्ले, ग्राम हर तरफ आम प्रचलन बढ़ चला है धूप से बचने के लिए युवक-युवतियां अपने मुह को रूमाल, गमछा या ओढ़नी से पूरी तरह से ढक लेते है। सफेद, हरे, नीले, पीले हर तरह के बुर्का, रूमाल, गमछे (स्कार्फ) बाजार में उपलब्ध होते है जिनका उपाय धूप से बचने के लिए किया जाता है। आज आप किसी भी युवक या युवती को देख लीजिए चाहे वे स्कूल जाये, कॉलेज जाये, घूमने जाये ‘‘परदा’’ का उपयोग ये ’’स्कार्फ (रूमाल)’’ के रूप में करते है। ये घर से निकलते समय ही अपने चेहरे को एक स्कार्फ से ढक लेते है। यह सिर्फ दोपहर में धूप से ही बचने के लिए उपयोग नहीं किया जाता बल्कि सुबह हो या शाम हर समय यह चेहरो पर देखा जा सकता है।
आज का युवा 19 वी और 20 वी सदी के बीच झूल रहा है। वह 20 वी सदी में जीना तो चाहता है पर बगैर 19 सदी को नाराज किये। इसके लिए उसे इस ‘‘परदे’’ की शख्त जरूरत है। विस्तार में इस तथ्य को समझने हेतु इस उदाहरण देता हूं। एक युवक है और युवती दोनो बीसवी सदी की संस्कृति में रचे-बसे है और एक दूसरे से सम्बंध होने की बात भी स्वीकार करते है। इन दोनो ही के परिवार है जो इन्हे बहुत चाहते है। ये भी अपने-अपने परिवार का बहुत मान करते है। साथ ही आस-पड़ोस, रिस्ते नाते सभी की ये इज्जत करते है। इनका परिवार 19 वी सदी के पारम्परिक संस्कारों के आधीन है। इस कारण ये दोनो कभी ऐसा कोई काम नहीं करना चाहते जिससे परिवार, समाज और नगर में इन पर कोई उंगली उठा सके। इन्हे इनके परिवार का मान किसी भी कीमत पर रखना है। इनके मन आधुनिक होने के कारण आधुनिकता के सारे रंग भी जी लेना चाहते है। इसका उपाय इन्होने यह निकाला की ये जब भी दोनो साथ निकलते है, किसी पार्क में जाते है, किसी सार्वजनिक स्थान पर मिलते है तो लड़की एक ‘‘स्कार्फ (रूमाल)’’ अपने चेहरे पर लपेट लेती है। इसके उपयोग कर वे खुलेआम शहर की गलियों में घूम लेते है। पहचान छुप जाने से इनके दोनो ही मनोरथ पूरे हो जाते है। शादी से पूर्व किसी लड़के के साथ देखे जाने के कलंक  से बचना साथ ही अपने आधुनिक विचारों के पंखो को उड़ान देते हुए अपने साथी के साथ खुलेआम दूनिया के सामने अपना प्रेम भी अभिव्यक्त कर देते है।
भारत के कई क्षेत्र है जहां हिन्दू धर्म में बुर्का प्रथा प्रचलित है जिसे स्थानीय भाषा में परदा प्रथा या घूंघट के नाम से जाना जाता है। यहां इस प्रथा कि इतनी अधिक घुसपैठ है कि बहु बेटिया अपने बड़े बुजुर्गाे के सामने बिना सिर ढके बाहर नहीं निकल सकती। यूवतियों को समाज से थोड़ी बहुत छूट मिल जाती है विवाह तक उनपर उतनी शख्ति नही होती। परन्तु विवाह के पश्चात् पत्नि का चेहरा तो मायके वालों और पति के अलावा शायद ही कोई भाग्यशाली हो जो देख पाता हो। यही नहीं देश के कोने कोने में यह प्रथा किसी न किसी रूप में किसी न किसी नाम से चलन में है। देश में उच्च शिक्षित एवं सम्पन्न परिवारों को अगर छोड़ दिया जाय तो लगभग सभी जाति वर्ग और समाज पर इसका असर देख सकते है। फिर क्यूं हम एक ऐसी रूड़ीवादी कट्टर परम्परा जिसमें हम स्वयं बराबर के भागीदार है इसे ‘इस्लाम’ पर थोपते है। 
सर्वधर्म समभाव वाले भारत में जहां ’’बुर्का’’ किसी एक धर्म की सम्पत्ति न होकर देश के प्रत्येक धर्म और वैचारिक मतों में आस्था, परम्परा या जरूरत के रूप में अपनी पकड़ बनाये हुए है। इसे प्रतिबंधित कर पाना आसान न होगा। जहा अन्य धर्मो के अनुयायी इस प्रथा को किसी न किसी रूप में संरक्षण दे रहे है। तब इसे इस्लामिंक परम्परा मानकर मानकर कट्टरता की आड़ में यदि इसके एक स्वरूप पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो फर्क सिर्फ इस्लाम को नहीं पड़ेगा पीड़ित हर भारतीय होगा। मेरे विचार में बुर्का पर प्रतिबंध लगाने से पहले इस पर गम्भीर सोच विचार करने की जरूरत है। इन्हे इन्ही स्वरूप में रहने देते हुए सिर्फ इनकी कुरीतियों को दूर करने की आवश्यकता है। भारत अपनी स्वयं की सांस्कृतिक रचना के अनुसार चलता है। यहां थोपी गई संस्कृति या परम्परा नहीं टिक सकती। कोई बाहरी चीज आती भी है तो वह तभी स्वीकार होगी जब उसका सामाजिक जीवन में व्यापक उपयोग हो और उसके नुकसान से अधिक फायदे हो। 


‘‘उन्हे बेपरदा करने तो चले शान से
जब उनका पर्दा उतरे तो खयाल रहे,
उन्हे बेपरदा देखो तो चेहरे पर शर्म का पर्दा न हो,
और परदे में रहकर उन्हे बेपरदा करो इतने बेशर्म न हो।।‘‘

2 Responses so far.

  1. Ek umda prastuti bahut achcha laga padhna par....... aaj ke yuvaon ko aapne 19vin aur 20vin shadi ke beech jhulta bataya wanha 20vin aur 21vin hona chahiye kyunki ab 21vin shadi aa chuki hai 19vin bahut pahle beet chuki hai. Aur bhi kuch galtiyan hain par wo typing aur translitrate ki vajah se hai. Asha hai meri tippani ko anyatha nahi lenge

 
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