‘‘सच्चाई-निर्भिकता, प्रेम-विनम्रता, विरोध-दबंगता, खुशी-दिल
से और विचार-स्वतंत्र अभिव्यक्त होने पर ही प्रभावी होते है’’
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यु न कहो पत्थर दिल

3 comments
क्यु इतना प्यार दिखाती हो 
उस पर लुट जाना चाहती हो 
फिर हर बार क्या सोच कर तुम 
उससे खुद को यु बचाती हो 
क्या तेरे दिल मै प्यार नहीं ?
क्या उसके जेसा एहसास नहीं 
फिर बार बार उस तक जाके 
क्यु लोट जाना चाहती हो 
उसके एहसास जगाती हो 
उसके अरमान सजाती हो 
जब वो सपनो मै रंग भरता है 
तो क्यु........  बेरंग उसे कर आती हो 
फिर क्यु उसका अच्छा तुम चाहती हो
 उसके अरमान जगाती हो 
अपने को यु पत्थर  दिल कह फिर 
क्यु  उसका दिल  यु दुखाती हो ? 

3 Responses so far.

  1. Jyoti says:

    hi, Mem Jaisi aapki tareef suni thi waisi hi hai aap.
    hume bhi sikhaiye na aisa hi

  2. देर से जवाब देने के लिए आप सभी से माफ़ी चाहती हु !
    लेख पड़ने और सराहने के लिए आप दोनों का धन्यवाद करती हु !
    तारीफ करने वाला तारीफ सुनने वाले से ज्यादा खुबसूरत होता है दोस्त !

 
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